राजा हो या रानी !
तज खेती, कर ले मजदूरी, छोड़ अरे नादानी !
देते हैं फरमान यही सब, राजा हो या रानी !!
छोड़ अरे नादानी !
सत्ता पाई सेठ बन गए, सेठ बने सत्ता हथियायी ,
लक्ष्मी का नाता महलों से, दौड़ दौड़ महलों पर धायी।
गोरी पास रखी, काली को गोरों के देशों में भेजा,
काली भी गोरी होकर ही, फिर लौटी महलों में आई ।।
खटका लक्ष्मी की नजरों में, तेरा दाना पानी।
छोड़ अरे नादानी ! 1
भरे हुए गोदाम सभी अब, कंगाली का गया जमाना ,
लाखों टन सड़ गया, तुम्हें अब, कितना अन्न और उपजाना ?
कमी अगर हो गई कभी, तो अमरीका से मँगवा लेंगे,
पियो सोम-रस झूमो गाओ, जगह जगह तो है मयखाना ।।
सन्तोषी ही परम सुखी हैं, सुन सन्तों की बानी ।
छोड़ अरे नादानी ! 2
मायापुरी बना लेने दे, रोक न उनके राजपथों को ,
खेती दे दे, हरजाने से पाल पोस अपनी पुश्तों को ।
लक्ष्मी खड़ी रिझाने आ जा, छू ले और देख ले पलभर,
लौटेगी वो महलों को ही, चाहा कब उसने कृषकों को ??
बनकर ही मजदूर तुझे है, दर दर ठोकर खानी ।
छोड़ अरे नादानी ! 3
चालें नई नई चलते हैं, लोकतंत्र के राजा तेरे ,
राजधानियों में ठहरे हैं, सेठ दलाल डालकर डेरे ।
वन उजड़े, खेती उजड़ेगी, गाँव उजड़कर नगर बसेंगे ,
पूँजीवादी सामन्तों के, पड़ने लगे भयावह घेरे ।।
दुहराएगा समय देश की, फिर से करुण कहानी ।
छोड़ अरे नादानी ! 4
तज खेती, कर ले मजदूरी, छोड़ अरे नादानी !
देते हैं फरमान यही सब, राजा हो या रानी !!
छोड़ अरे नादानी !
रचयिता – डॉ. जे पी बघेल, मुंबई
मोबाइल – 09869 07 8485
देते हैं फरमान यही सब, राजा हो या रानी !!
छोड़ अरे नादानी !
सत्ता पाई सेठ बन गए, सेठ बने सत्ता हथियायी ,
लक्ष्मी का नाता महलों से, दौड़ दौड़ महलों पर धायी।
गोरी पास रखी, काली को गोरों के देशों में भेजा,
काली भी गोरी होकर ही, फिर लौटी महलों में आई ।।
खटका लक्ष्मी की नजरों में, तेरा दाना पानी।
छोड़ अरे नादानी ! 1
भरे हुए गोदाम सभी अब, कंगाली का गया जमाना ,
लाखों टन सड़ गया, तुम्हें अब, कितना अन्न और उपजाना ?
कमी अगर हो गई कभी, तो अमरीका से मँगवा लेंगे,
पियो सोम-रस झूमो गाओ, जगह जगह तो है मयखाना ।।
सन्तोषी ही परम सुखी हैं, सुन सन्तों की बानी ।
छोड़ अरे नादानी ! 2
मायापुरी बना लेने दे, रोक न उनके राजपथों को ,
खेती दे दे, हरजाने से पाल पोस अपनी पुश्तों को ।
लक्ष्मी खड़ी रिझाने आ जा, छू ले और देख ले पलभर,
लौटेगी वो महलों को ही, चाहा कब उसने कृषकों को ??
बनकर ही मजदूर तुझे है, दर दर ठोकर खानी ।
छोड़ अरे नादानी ! 3
चालें नई नई चलते हैं, लोकतंत्र के राजा तेरे ,
राजधानियों में ठहरे हैं, सेठ दलाल डालकर डेरे ।
वन उजड़े, खेती उजड़ेगी, गाँव उजड़कर नगर बसेंगे ,
पूँजीवादी सामन्तों के, पड़ने लगे भयावह घेरे ।।
दुहराएगा समय देश की, फिर से करुण कहानी ।
छोड़ अरे नादानी ! 4
तज खेती, कर ले मजदूरी, छोड़ अरे नादानी !
देते हैं फरमान यही सब, राजा हो या रानी !!
छोड़ अरे नादानी !
रचयिता – डॉ. जे पी बघेल, मुंबई
मोबाइल – 09869 07 8485
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